1) आवश्यकताएं : प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकताएं होती हैं , जिनके अभाव में उसका अस्तित्व असंभव है। जैसे जल , भोजन , वायु आदि। उसकी कोई आवश्यकता पूरी नहीं होती है तो उसके शरीर में तनाव और असंतुलन हो जाता है जिसके फलस्वरूप उस प्राणी का क्रियाशील होना अनिवार्य हो जाता है । साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।
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2) चालक : चालक शरीर की एक आंतरिक क्रिया या दशा है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरणा प्रदान करती है। प्राणी की आवश्यकताएं उनसे संबंधित चरों को जन्म देती हैं। जैसे - भोजन प्राणी की आवश्यकता है। यह आवश्यकता उसमें भूख चालक , चालक को जन्म देती है । भूख चालक उसे भोजन की खोज करने के लिए प्रेरित करता है।
3) उद्दीपक : प्रोत्साहन की परिभाषा उस वस्तु स्थिति अथवा क्रिया के रूप में की जाती है जो व्यवहार को उद्दीप्त , उत्साहित और निर्देशित करता है। अर्थात प्रोत्साहन व्यक्ति के व्यवहार को उद्दीप्त , निर्देशित एवं उत्साहित करता है । आवश्यकता चालक को जन्म देती है और जिस तत्व द्वारा चालक की संतुष्टि होती है, उसे प्रोत्साहन कहा जाता है। जैसे - भूख एक चालक है और भूख चालक को भोजन संतुष्टि देता है । अत: भूख चालक के लिए भोजन एक प्रोत्साहन है , जो व्यक्ति की शारीरिक कमी या तनाव को दूर करता है।
4) प्रेरक : प्रेरक अति व्यापक शब्द है । इसके अंतर्गत उद्दीपन के अतिरिक्त चालक , तनाव , आवश्यकता सभी समाहित हो जाते हैं। ऐसा कोई प्रेरक व्यक्ति के व्यवहार को जन्म देता है और किसी एक निश्चित दिशा में निश्चित विधियों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करता है ।
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अभिप्रेरक के प्रकार
अभिप्रेरणा मनुष्य की वह अवस्था है जो किसी आवश्यकता के कारण भीतर से संचालित करती है तथा वांछित फल की प्राप्ति या लक्ष्य की ओर निर्देशित करती है। यह समस्त बुनियादी व्यवहार ही अभिप्रेरक कहलाता है। इसको दो भागों में विभाजित किया गया है -
1) प्राथमिक अभिप्रेरक : इसे आरंभिक अभिप्रेरक भी कहते हैं । क्यों कि व्यक्ति और उसकी जाति के संरक्षण के साथ जुड़े होते हैं । जन्म से इनका अस्तित्व होता है। यह अभिप्रेरक शारीरिक एवं जैविकीय बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है । जैसे भूख , प्यास , सांस लेना , काम भावना की तृप्ति , मल , मूत्र , पसीना आदि अनावश्यक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की आवश्यकता ।
2) सेकेंडरी अभिप्रेरक : सेकेंडरी अभिप्रेरक जन्म से विकसित नहीं होते हैं बल्कि इन अभिप्रेरकों को प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार से अभिप्रेरक आवश्यकताओं को जन्म देते हैं और मनुष्य को एक निश्चित लक्ष्य की ओर अग्रसर करते हैं। अत: यह अभिप्रेरक मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को जन्म देते हैं। जैसे - अपनत्व और प्यार की आवश्यकता , स्वतंत्र होने या आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता , संरक्षण व शक्ति प्रदर्शन की आवश्यकता , स्तर और स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता , शक्ति प्रेरक , उपलब्धि अभिप्रेरक आदि।
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