भाषा में व्याकरण का महत्व, शैली तथा टायलर के शब्द Importance of Grammar in Language, Style and Tyler's Words

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Sat, 11 Sep 2021 08:05 PM IST

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 भाषा में व्याकरण का महत्व-

भाषा एक विशेष संकेत प्रणाली है। प्रत्येक भाषा एक अलग अलग शब्दों, अर्थात उन पारंपरिक ध्वनि संकेतों से  बनी होती है जो, विभिन्न वस्तुओं और प्रक्रियाओं के घोतक होते है। भाषा का दूसरा संघटक अंग है “ व्याकरण के कायदे”, जो शब्दों से वाक्य बनाने में मदद करते है। ये वाक्य ही विचार व्यक्त करने का साधन है। एक भाषा के शब्दों से, व्याकरणीय कायदो की बदौलत असंख्य सार्थक वाक्य बोले या लिखे जा सकते है और पुस्तकों या लेखी की रचना की जा सकती है।
कोई भी मनुष्य शुद्ध भाषा का पूर्ण ज्ञान व्याकरण के बिना प्राप्त नही कर सकता। अतः भाषा और व्याकरण का घनिष्ठ संबंध है। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

व्याकरण, भाषा में उच्चारण, शब्द प्रयोग, वाक्य गठन तथा अर्थों के प्रयोग के रूप को  निश्चित करता है।

Source: ThoughtCo

इस तरह भाषा विविधितम विचारों की अभिव्यक्ति, लोगो की भावनाओं और अनुभवों का वर्णन, गणितीय प्रमेयों का निरूपण तथा वैज्ञानिक व तकनीकी ज्ञान की रचना करना संभव बनाती है। .

शैली - विकास की प्रक्रिया में भाषा की दायरा भी बढ़ता जाता है। यही नहीं  एक समाज में एक जैसी भाषा बोलने वाले व्यक्तियों , का बोलने का ढंग  उनकी उच्चारण प्रकिया, शब्द भंडार,वाक्य विन्यास आदि अलग-अलग हो जाने से उनकी भाषा में पर्याप्त अंतर आ जाता है। इसी को शैली कह सकते है।

# भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा बच्चे  स्वयं से और दूसरों से बात करते है।  शब्दों से ही वे अपने यथार्थ का सृजन तथा उसकी समझ बनाना शुरू करते है। सीखने के प्रक्रिया के लिए भाषा को समझने और उसे स्पष्ट तथा प्रभावी ढंग से          उपयोग करने का क्षमता हासिल करना आवश्यक है।

# भाषा केवल संवाद का ही साधन नही है यह वह माध्यम भी है, जिसके द्वारा हम अधिकांश ज्ञान हासिल करते है।

राष्ट्रीय पाठचर्चा की रूपरेखा - “ 2005 (एन.सी. एफ.-2005)” मनुष्यों में भाषा की नैसर्गिक क्षमता होने की धारणा का समर्थन करती है।

अधिगमकर्ताओं में व्यक्तिगत भिन्नताएं, भाषा, जाति, लिंग, सम्प्रदाय धर्म आदि के विषमताओं पर आधारित भिन्नताओं की समझ–

1. सभी व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि,कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते है। यहां तक कि दो जुड़वा भाई बहनों में भी पूर्णतया समानता नहीं होती है।

2. उनके रंग, रूप, शारीरिक गठन, विशिष्ट  योग्यताओं, बुद्धि, अभिरुचि, स्वभाव आदि के संदर्भ में एक दूसरे से कुछ ना  कुछ भिन्नता मिलेगी। इसी तरह उनमें पायी जाने  वाली इस भिन्नता को ही ,"व्यक्तित्व भिन्नता" कहा जाता है।

3. अन्य बालकों की विभिन्नताओं मुख्य  कारकों को प्रेणाओं, बुद्धि परिपक्वता,पर्यावरण संबंधी विभिन्नताओं द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।

* व्यक्तिगत विभिन्नता के संदर्भ में पाए
    जाने वाले विभिन्न पक्षों के संबंध में "मनोवैज्ञानिक टायलर" के शब्द बड़े स्पष्ट है

* मापित की जाने वाली विभिन्नताओं के अस्तित्व को शारीरिक आकर, आकृति, दैहिक कृत्य, गामक क्षमताओं, बुद्धि निष्पति, ज्ञान, रुचियों, अभिवृतियों एवं व्यक्तित्व लक्षणों के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
 
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व्यक्तिगत विभिन्नता -

प्रत्येक जाति के सदस्य आपस में विभिन्नता रखते है। यह उतना ही सत्य है जैसा कि एक जाति से दूसरे जाति का का विभिन्नता रखना है। मानव योग्यताओं और विभिन्नताओं संबंधी वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार सभी लोगो में अलग अलग श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।जिस प्रकार प्रत्येक जाति ने अपने पर्यावरण का सामना करने हेतु विशिष्ट प्रकार का व्यवहार विकसित कर रखा है, उसी प्रकार प्रत्येक जाति के प्राणी अपनी जातीय सीमाओं के अंतर्गत अपने समियोजनार्थ विशिष्ट प्रकार के व्यवहार को प्रदर्शित करते है।

यधपि सभी बच्चों के संदर्भ में विकास की प्रतिकृति का अनुसरण अपनी ढंग ओर अपनी क्षमतानुसार करता है।

• सभी बालक एक समान आयु रखते हुए भी विकास के एक निश्चित स्तर पर एक समान नही पहुंचते।
• प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक लंबे चौड़े मार्ग के समान है। उसका सफर उसे अवश्य पूरा करना होता है।
• व्यक्तिगत विभिन्नताओं के विकास की गति और प्रतिकृति के कई कारण है! दोनो को शारीरिक रूप से अथवा शारीरिक परिस्थितियों के द्वारा बदला जा सकता है।

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